क्या हाई कोर्ट के आदेश की उत्तराखंड के अधिकारी कर रहे हैं अवहेलना!

Share your love

लोकजन टुडे देहरादून

हाल ही में उत्तराखंड माननीय उच्च न्यायालय ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अजीबोगरीब फैसले को लेकर अपना निर्णय सुनाया था जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा कारागार अधीक्षकों का प्रभार जनहित से जुड़े आईपीएस अधिकारियों को सौंप दिया गया था जिसकी कानून की विशेषज्ञों ने काफी चर्चा की थी और यह भी तर्क दिया था कि ज्यूडिशल कस्टडी और पुलिस कस्टडी आखिर एक कैसे हो सकती है  इस खबर को लोकजन टुडे ने भी बड़ी प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया था..

जिसके बाद नैनीताल की सीनियर एडवोकेट द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में पूर्व मुख्यमंत्री के आदेश को चुनौती देती हुई पीआईएल दाखिल की गई थी जिसमें देश के बड़े वकीलों ने शिरकत की थी और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा अजीबोगरीब फैसले पर कई सवालिया निशान खड़े किए थे जिसमें अदालत ने दोनों पक्षों की बहस सुनकर यह माना था कि ज्यूडिशल कस्टडी और पुलिस कस्टडी दोनों में बेहद बड़ा अंतर है और जनहित से जुड़ा पुलिस आईपीएस अधिकारी जेल अधीक्षक नहीं हो सकता है फैसला सुनाते हुए माननीय उच्च न्यायालय द्वारा प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश को निरस्त करने का आदेश दिया बावजूद इसके लगता है प्रदेश सरकार के बड़े अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी जबकि इस फैसले को निरस्त कि वे माननीय उच्च न्यायालय को 2 हफ्ते का वक्त बीत चुका है जबकि उच्च न्यायालय के फैसले के तुरंत बाद इस आदेश को लागू कराना प्रदेश सरकार की बड़े अधिकारियों की ही जिम्मेदारी थी लेकिन अफसोस अभी तक बड़े अधिकारियों ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है इसी बात से परेशान अपीलकर्ता सीनियर एडवोकेट संजीव आनंद ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कार्यवाही करने की मांग की है और यह भी बताया है कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का सरकार को पालन करना कितना अनिवार्य है अपीलकर्ता एडवोकेट संजीव आनंद ने उच्च अधिकारी को यह भी चेताया है कि आगर आप इस फैसले को लागू नहीं करते हैं तो माननीय उच्च न्यायालय के फैसले का अवमानना मानते हुए वे माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष गुहार लगाने के लिए बाध्य होंगे…