दिल्ली में कोरोनावायरस संक्रमित मरीजों को एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाने और उनके शवों को अंतिम संस्कार तक पहुंचाने वाले एंबुलेंस ड्राइवर आरिफ खान की हिंदू राव अस्पताल में कोरोना संक्रमण से मौत हो गई। सीलमपुर के रहने वाले आरिफ खान कोरोना संक्रमित मरीजों की मदद की वजह से पिछले छह महीने से अपने घर तक नहीं गए थे, वह छह महीने से घर से 28 किमी दूर पार्किंग एरिया में ही सो रहे थे। वह सिर्फ फोन के जरिए ही अपनी पत्नी और बच्चों के संपर्क में थे, उन्होंने शनिवार सुबह अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।
आरिफ खान फ्री एंबुलेंस सेवा देने वाले शहीद भगत सिंह सेवा दल के साथ काम करते थे, यह सेवा दल दिल्ली – एनसीआर में फ्री आपातकालीन सेवाएं देता है। जब किसी कोरोना मरीज की मौत हो जाती थी, और उसके परिवार के पास अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं होते थे, तो आरिफ खान पैसे देकर भी उनकी मदद करते थे। आरिफ के सहयोगियों ने कहा कि जब उनकी मौत हुई, तो उनका परिवार उनके पास नहीं था, उनके शव को परिवार ने काफी दूर से ही कुछ मिनट के लिए देखा।
जितेंद्र कुमार ने कहा कि आरिफ ने सुनिश्चित किया था कि सभी को अंतिम विदाई मिले, लेकिन उनका अपना परिवार उनके लिए ये नहीं कर सका। आरिफ का परिवार सिर्फ कुछ मिनट के लिए ही उन्हें दूर से देख सका। उन्होंने कहा कि खान मार्च से अब तक 200 कोरोना संक्रमित शवों के संपर्क में आए थे।
आरिफ खान 3 अक्टूबर को काफी बीमार हो गए थे, जिसके बाद उनका टेस्ट किया गया तो वह कोरोना पॉजिटिव निकले। अस्पताल में भर्ती होने के एक दिन बाद ही उनकी मौत हो गई। आरिफ खान के 22 साल के बेटे आदिल ने कहा कि उन्होंने अपने पिता को 21 मार्च को अंतिम बार देखा था, जब वह घर पर कुछ कपड़े लेने गए थे। परिवार को हमेशा उनकी चिंता होती थी, वह अपना काम अच्छी तरह से कर रहे थे, वह कभी भी कोरोना संक्रमण से नहीं डरे, जब वह आखिरी बार घर गए थे, तब भी वह बीमार थे।
बतादें कि आरिफ खान अपने परिवार के इकलौते कमाऊ सदस्य थे, वह हर महीने 16,000 रुपये कमाते थे, नौ हजार रुपए उन्हें अपने घर का किराया भरना पड़ता था। जितेंद्र कुमार ने कहा कि आरिफ का जाना उनके परिवार के लिए बहुत बड़ा झटका है। आरिफ भले ही एक ड्राइवर थे, लेकिन वह मुस्लिम होते हुए भी हिंदुओं के अंतिम संस्कार के लिए पीड़ित परिवार की मदद करते थे, वह अपने काम के लिए पूरी तरह से समर्पित थे। उन्होंने कहा कि आरिफ दिन में 12 से 14 घंटे तक काम करते थे, कभी-कभी वह सुबह के तीन बजे तक भी काम करते थे।
उन्होंने बताया कि कोरोना पॉजिटिव होने के बाद उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। वहीं आरिफ के एक और साथी ने भी उनकी तारीफ करते हुए कहा कि वह बहुत ही दयालु थे। बतादें कि आरिफ जिस सेवा दल से साथ जुड़े थे वह यसहीद भगत सिंह सेवा दल 1995 में बनाया गया था, और दिल्ली एनसीआर में जरूरतमंदों को एंबुलेंस और रक्तदान समेत मुफ्त और आसान आपातकालीन सेवाएं देता है।