लोक संगीत के पितामह जीत सिंह नेगी का निधन…जाने उनके बारे में कुछ बातें…

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देहरादून: उत्तराखंड के वयोवृद्ध लोक गायक, संगीतकार, रंगकर्मी, कवि-गीतकार जीत सिंह नेगी का निधन हो गया है। जीत सिंह नेगी ने धर्मपुर स्थित निवास पर अंतिम सांस ली। वे 94 वर्ष के थे।

जीत सिंह नेगी उत्तराखंड के ऐसे पहले लोकगायक थे जिनके गीतों का ग्रामोफोन रिकॉर्ड 1949 में यंग इंडिया ग्रामोफोन कंपनी ने जारी किया था। उस दौर पर जब लोगों को पता भी नहीं था कहाँ कैसे रिकॉर्ड होता है। तब पहली बार ऐसा हुआ था, जब किसी उत्तराखंडी लोकगायक के गीतों का रेकॉर्ड उस समय देश की मशहूर ग्रामोफोन कंपनी ने जारी किया।

जीत सिंह नेगी का जन्म 2 फरवरी 1925 को पौड़ी जिले के अयाल गांव में हुआ था। वर्तमान में वे देहरादून के धर्मपुर क्षेत्र के नेहरू कॉलोनी में रह रहे थे। जो रिकॉर्ड हुआ था उसमें जीत सिंह नेगी के 6 गीत शामिल किए गए थे। नेगी अपने दौर के न केवल जाने-माने लोकगायक रहे हैं, बल्कि उत्कृष्ट संगीतकार, निर्देशक और रंगकर्मी भी रहे। नेगी ने दो हिंदी फिल्मों में भी बतौर सहायक निर्देशक काम किया है।

जीत सिंह नेगी ऑल इंडिया रेडियो पर गाने वाले पहले गढ़वाली लोकगायक थे। उनके ‘शाबासी मेरो मोती ढांगा’ को चीनी प्रतिनिधिमंडल ने कानपुर में न केवल रिकॉर्ड किया, बल्कि रेडियो पीकिंग से उसका प्रसारण भी किया। वे पहले ऐसे गढ़वाली लोकगायक भी हैं, जिनके किसी गीत का ऑल इंडिया रेडियो से प्रसारण हुआ। इसके अलावा ‘शाबासी मेरो मोती ढांगा…’ ‘रामी बौराणी…’ ‘मलेथा की गूल…’ जैसे कई उनके नाटक भी लोकप्रिय हुए।

1950 के दशक की शुरूआत में रेडियो से एक गीत प्रसारित हुआ तो उत्तराखंड से लेकर देश विदेश में में प्रवासी उत्तराखंडियों के बीच बेहद लोकप्रिय हुआ। इस सुमधुर खुदेड़ गीत के बोल थे, ‘तू होली उंचि डांड्यूं मा बीरा-घसियारी का भेष मां-खुद मा तेरी सड़क्यां-सड़क्यों रूणूं छौं परदेश मा…।’ (तू होगी बीरा उंचे पहाड़ों पर घसियारी के भेष में और मैं यहा परदेश की सड़कों पर तेरी याद में भटक रहा हूं-रो रहा हूं।) जीत सिंह नेगी के निधन पर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी जताया शोक।उन्होंने दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने और शोक संतप्त परिजनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।

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