
रिपोर्ट: कुलदीप रावत
LokJan Today(देहरादून): उत्तराखंड स्वास्थ सेवाओं के लिए वरदान साबित होने वाली 108 एम्बुलेंस इन दिनों सबसे बुरे दौर में है। बजट के नाम पर इस सेवा को चलाने के लिए संचालको के पास कुछ भी नही है। डर है कि पहाड़ में स्वास्थ की लाइफलाइन मानी जाने वाली ये सेवा हमेशा के लिए बंद ना हो जाये।
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य को लेकर सबसे बड़ी समस्या है कि किसी भी आपातकालीन स्थिति में मरीज कैसे किसी अस्पताल तक पहुंचे और इसी के लिए साल 2007 में केंद्र सरकार के सहयोग से शुरू हुई थी 108 एंबुलेंस सेवा। राज्य में स्वास्थ सेवाओं की लाइफ लाईन कही जाने वाली इस 108 सेवा पर बजट ना होना उत्तराखंड के दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले उन लोगों के लिए भी चिंता का विषय है जो इस सेवा के चलते बड़े अस्पतालों तक पहुंच रखते है।
इस सेवा पर बजट के ना होने का असर इन एंबुलेंस पर साफ दिखाई देने लगा है। लम्बे समय से 108 आपातकालीन सेवा के लिए सरकार की तरफ से कोई भी बजट जारी नहीं हो पाया है। जिसके कारण इस सेवा पर ब्रेक लग गया है। अधिकारीयों की माने तो समय समय पर शासन से बजट की मांग की जाती रही है जिसे पूरा नही किया गया।
108 के प्रभारी अनिल शर्मा कहते हैं कि पिछले कुछ समय से 108 का बजट जारी नहीं हुआ है। जिससे 108 एम्बुलेंस सेवा पर संकट आ सकता है। उन्होंने शासन को इसके लिए पत्र भी लिखकर जल्द ही बजट की मांग की है ताकि 108 जैसी आपातकालीन सेवाएँ सुचारू ढंग से चलाया जा सकें। केंद्र सरकार की ओर से उत्तारखण्ड में ये सेवा 2007 में शुरू हुई थी।
जैसे लेकिन धीरे धीरे वाहनों की हालत खराब होने लगी और जिस पैमाने पर 108 संचालित किया जाता था उसमें कमी आने लगी। अब हालात ये हो गए कि इस सेवा को न तो केंद्र सरकार से कोई बजेट मिल रहा है और न ही राज्य सरकार से बजेट मिल पा रहा है।