ऋषिकेश: जब देवताओं और असुरों ने सागर मंथन किया तो अमृत और अन्य कई अमूल्य वस्तुओं के साथ सागर में से विष भी निकला, इस विष के प्रकोप से जन साधारण को हानि पहंचने लगी। तब देवताओं के विनती करने पर महादेव शिव शंकर ने वो विष पी लिए जिस से उनका गाला नीला पड़ गया और नीलकंठ महादेव के नाम से उनकी जय जय कार होने लगी। आज हम चल पड़े है उन्ही नीलकंठ महादेव के दर्शनों के लिए….
महाशिवरात्रि के रूप में देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार महाशिवरात्रि आज यानी 21 फरवरी को है। कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा से व्रत रखते हैं उन्हें भगवान शिव की कृपा मिलती है। इस दिन पूरी श्रद्धा और भक्ति से भोले शंकर का व्रत रखना चाहिए।
ऋषिकेश से समीप मणिकूट पर्वत पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकला विष शिव ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा गया। ऋषिकेश को हिमालय का प्रवेशद्वार कहा जाता है। नीलकंठ महादेव उत्तर भारत के मुख्य शिवमंदिरों में से एक है। मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने जब विष ग्रहण किया था तो उसी समय पार्वती ने उनका गला दबाया, ताकि विष उनके पेट तक न पहुंच सके। इस तरह विष उनके गले में बना रहा।
विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था। गला नीला पड़ने के कारण ही भगवान शिव को नीलकंठ नाम से जाना गया। मंदिर के समीप पानी का झरना भी है, जहां श्रद्धालु मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।