खाने को लिए दाना नहीं ! रहने के लिए बिस्तर नहीं ! दरवाजों को ढकने के लिए पल्ले किवाड़ नहीं…

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गरीबी की इससे ज्यादा भयानक तस्वीर मैंने आज तक कहीं, देखी नहीं ।

शशि भूषण मैथानी

हे परमेश्वर मैं आपका आभारी हूँ जो आपने मुझे इस बेहद गरीब व लाचार परिवार की मदद करने के लिए चुना व मेरी भावना को सेवा के लिए प्रेरित किया । मैं कभी नहीं कहूंगा कि यह मैंने किया, मैं यह जरूर कहूंगा कि सब कुछ ऊपर वाला करवाता है और वही हमारी ड्यूटी तय करता है।

पत्रकार भाई राजेश बहुगुणा जी ने चंद रोज पहले एक बहुत मार्मिक स्टोरी अपलोड की थी जिसे देखने के बाद मेरा मन बेचैन हो उठा । तुरन्त बहुगुणा जी से संपर्क किया और मैंने स्वयं इस परिवार से मिलने की इच्छा जाहिर की । लेकिन आज जब मैं केशरवाला गांव पहुंचा तो इस परिवार की हालत देख सोच में पड़ गया कि आखिर इनकी मदद कैसे की जाए !

दो कमरों का घर उस पर दरवाजे नहीं थे…। किसी ने चावल दिए हैं, पर उसे रखने के लिए बर्तन नहीं था…..। जिस थैले में चावल थे वह कमरे के एक कोने मैं फैले हुए थे…। गरीब माता अनीता पंवार जी ने बताया कि चौखट हैं पर दरवाजों के पल्ले नहीं हैं…,
रात को जंगली जानवर ने घुसकर थैला फाड़ दिया, चावल खा लिए बाकी बिखर गए…।

बिस्तर के नाम पर 4 लोगों के परिवार में सिर्फ एक फटा पुराना गद्दा मात्र है…। रसोई में चूल्हा है पर उस पर पकाने के लिए न साग है न सब्जी है । मैंने अपने जीवन में गरीबी की इससे ज्यादा विभत्स तस्वीर नहीं देखी है ।

समय साढ़े 11 बजे लगभग का था । बाहर गुनगुनी धूप खिली थी लेकिन यह परिवार रोशनी से दूर खंडहर के अंदर घुप्प अंधेरे कोनों में दुबका हुआ था ।
सभी भूखे थे, बच्चे नाश्ता करना चाहते हैं पर माँ हाथों में दर्द बताकर खाना बनाने में असमर्थ बता रही है । लेकिन सच्चाई यह थी कि घर में बनाने के लिए कुछ था नहीं । बेटी की भूख बुझाने के नाम पर बेबश लाचार माँ अपने हाथों से उसके सिर को सहला रही थी । लगभग 17 साल की बेटी नजरें झुकाए हुए एक अंधेरे कोने में दुबकी डरी सहमी बैठी थी ।

इस बीच करीब 20 साल बड़ा बेटा गौरव दरवाजे के एक छोर से हल्की गर्दन बाहर कर झांकता है, यह देखने के लिए कि बाहर कोई आया है। गौरव की आंखे लाल हुई थी उसे देख लग रहा था कि वह कुछ गहरी सोच में है , उसे भूख भी है जिससे उसकी आंखें डबडबाई हुई थीं ।

इनके घर के बाहर मैं, बहुगुणा जी के साथ बात कर रहा था । लेकिन वहां तस्वीर विचलित करने वाली थी।मैं चाहकर भी उस जगह पर खड़ा नहीं हो पा रहा था।मुझे बार-बार उल्टी होने लगी। बहुगुणा जी ने कहा मैठाणी जी एक झलक अंदर देख लीजिए चंद सेकंड के लिए ही मैं उस कमरे में रुक पाया ।

मेरे पास आगे कोई शब्द नहीं है, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इनकी सेवा में क्या किया जाए… ?

बहुगुणा जी से मैंने पूछा आप क्या चाहते हो ? किस प्रकार से इस परिवार की मदद करनी है ?वो बोले यह तो आप ही बताइए । मैंने कहा आपने अपनी स्टोरी में और मुझे फ़ोन पर बताया था कि सबसे पहले इनका घर रहने लायक बनाया जाए ।वह आइडिया एकदम सही है, उसी दिशा में काम करो ।

मैं इसमें पहली मदद के रूप में ईश्वर की कृपा से यूथ आइकॉन क्रिएटिब फाउंडेशन (YiCF) की “समौण इंसानियत की” मुहिम के तहत 5 हजार रुपये का चैक दे देता हूँ । क्योंकि इसे ठीक करने में एक सवा लाख लगना मामूली बात है ।

अभियान शुरू कर देते हैं, साथ ही इसमें और भी अन्य लोगों को जोड़ेंगे । जिन सक्षम लोगों के मन को भगवान जागृत करेंगे वह खुद ही मदद के लिए आगे आएंगे । और इस परिवार में खासकर दो मासूम बच्चों का भविष्य बदल जाएगा । सेवा कार्यों को निष्कपट मन से करना जरूरी है ।इसमें जाती, धर्म, वर्ग, क्षेत्र, आदि का भेद कभी भी मन में न आने दें ।

आज की यह पहल न मेरी है न आपकी । हम, आप तो महज माटी के पुतले मात्र हैं । हमसे ये काम तभी हो रहा है, जब ऊपर वाला चाह रहा है । वरना मेरी क्या हैसियत है यह करने की ।

हम सबको सिर्फ और सिर्फ उस ऊपर वाले परमेश्वर को ही सर्व शक्तिमान मानते हुए निरंतर प्रार्थना व विनती करते रहना है कि वह हमें जीवन और अधिक ऐसे असहाय व जरूरतमंद गरीब लोगों की सेवा का अवसर प्रदान करे । आज के लिए भाई राजेश बहुगुणा जी का पुनः धन्यवाद ।

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