गरीबी: बदनसीबी ने छीना लाल, चंदे से पिता लाया कफन

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LokJan Today(हरदोई): रोटी न कपड़ा और न ही सिर छिपाने की जगह। भूखे बच्चे शाम को पिता के आने का इंतजार करते रहते। पन्नी डालकर रह रहा पिता कुछ कमाकर लाता तो कुछ खाते नहीं तो भूखे ही सो जाते। बदनसीब पिता को कुछ दिन से बीमारी ने घेर लिया तो बच्चों के खाने का कुछ इंतजाम तक नहीं कर सका। बच्चों की भूख पर वह आंसू बहा ही रहा था कि रविवार की रात उसकी किस्मत ने उससे एक बेटा छीन लिया। छोटे बच्चे की सांप के काटने से मौत हो गई तो गरीब पिता के पास कफन तक के रुपये नहीं थे। चंदा देकर लोगों ने कफन का इंतजाम किया। लालपालपुर निवासी पुतान की बदनसीबी सरकारी सिस्टम की पोल खोल रही है। भूमिहीन होने के बाद भी न उसके पास राशन कार्ड है न बच्चों के खाने पीने का इंतजाम। भूखे बच्चों को बस किसी रहमदिल इंसान का इंतजार है।

लखनऊ मार्ग पर सुरसा विकास खंड के लालपालपुर निवासी पुतानलाल करीब 20 वर्षों से कच्ची झोपड़ी में परिवार समेत रह रहा है। न उसके पास खेत है न कोई अन्य सहारा। रिक्शा चलाकर परिवार चलाता है। पांच वर्ष पूर्व उसकी पत्नी की उपचार के अभाव में मौत हो गई। चार बच्चों दाताराम (12) छोटू (10) कल्लू व नैना (7) को किसी तरह वह पाल पोस रहा। दीवारें गिर गईं, जमीन पर पानी भर जाता तो उसने एक मचान बना रखा। पन्नी डालकर बच्चों को लेकर रात में वहीं पर सोता। दिन में रिक्शा चलाता, जो कमा लाता, उसी से बच्चों को खिलाता, लेकिन कुछ दिन से पुतानलाल भी बीमार हो गया तो रिक्शा चलाने नहीं जा पाया। बच्चे भूख से तड़पते रहे। किसी ने कुछ खिला दिया तो ठीक नहीं तो ऐसे ही दिन-रात कट जाती।

पुतानलाल ने बताया कि रविवार की रात वह बच्चों को लेकर सो रहा था। किसी समय सांप ने छोटे बच्चे नैना को काट लिया और उसकी मौत हो गई। सोमवार की सुबह उसे जानकारी हुई। उसके पास इतना पैसा नहीं था कि बच्चे के कफन का इंतजाम कर ले। लोगों न कुछ रुपये दिए उससे कफन आया। अब कहने को तो सरकार की इतनी योजनाएं चल रही हैं लेकिन सोते सिस्टम को ऐसे परिवार की बदनसीबी नहीं दिख रही। बेसहारा पिता दर दर भटक रहा है। बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। पढ़ना लिखाना तो दूर की बात उनके पास खाने तक का इंतजाम नहीं है। बदनसीब परिवार को मदद की दरकार
जरूरतमंदों की मदद को सरकार का भी खजाना खुला है। समाजसेवियों की भी कमी नहीं है, लेकिन ऐसे बदनसीब परिवारों तक उनकी नजर नहीं पहुंच रही है। गांव वालों का कहना है कि सरकारी सिस्टम या फिर समाजसेवी कोई मदद कर दें तो कम से कम अन्य बच्चों का भविष्य तो बन जाए।

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