कोरोना की भेंट चढ़ा गन्ने के जूस का काम

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सुशील कुमार झा

वर्तमान समय में गन्ने के जूस का कारोबार कोरोना की भेंट चढ़ गया है। तीन महीने का यह काम पूरी तरह पिट गया है। इस कारोबार से जुड़े सैकड़ों लोगों के सामनेरोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। इस बार गन्ने की खपत भी जूस में नहीं हुई है। होली के बाद गन्ने के जूस की मांग प्रतिवर्ष शुरू हो जाती है। ठेली पर मशीन लगाकर गन्ने का जूस बेचने के इस कारोबार से रुडकी में ही सैकड़ों लोग जुड़े हैं। कम से कम तीन महीने का इसका सीजन होता है। इसमें अप्रैल, मई और जून शामिल हैं। मई और जून में यह कारोबार पूरी तरह परवान पर होता है। शहर में सैकड़ों लोग इस कारोबार से जुड़े हैं। छोटे कस्बे से लेकर शहर में काफी संख्या में इस रोजगार को करते हैं। हाईवे पर ही बड़ी संख्या में गन्ने का जूस बेचने वाले खड़े रहते हैं। आम आदमी भी गन्ने का जूस पीता है। गर्मी के मौसम में गन्ने के जूस की मांग अधिक रहती है। गन्ने के जूस की एक ठेली तैयार होने में 40 हजार से 50 हजार रुपये का खर्च आता है। जिन लोगों ने इस सीजन के लिए पैसे लगाए थे, ऐसे गरीब लोग अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे हैं। कोरोना महामारी ने उनके व्यापार को छीन लिया हैं। कस्बे के नसीम ने बताया कि उसने 40 हजार रुपये लगाकर ठेली तैयार की । महामारी में लॉकडाउन के चलते पूरा सीजन ऐसे ही चला गया। अब व्यापार की छूट मिली है तो लोग जूस पीते हुए डर रहे हैं। इस कारण काम बंद ही करना पड़ा है। समीर भी इस काम से 5 साल से जुड़े हैं। अब छूट मिलने पर ठेला लगाया है, लेकिन ग्राहक नहीं आ पा रहे हैं। तौफीक का कहना है कि दो माह तो इसका सीजन बड़ी मांग के साथ चलता है, इस बार तो सब पिट गया। इसी रोजगार से जुड़े संजय का कहना है कि वह 20 साल से इस कारोबार से जुड़े हैं, उनके साथ पहली बार ऐसा हुआ हैं। पूरे साल उम्मीद के साथ सीजन को करते हैं, इस बार सीजन ने सारे सपने तोड़ दिए हैं।

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